Friday, December 27, 2019

गांधीजी चाहते थे कांग्रेस, आज़ादी के बाद dissolve कर दी जाय। बहुत लंबी और ईमानदार सोच थी। पर गाँधी के उत्तराधिकारी और अपने ऊपर आज़ादी दिलवाने का श्रेय, मुसलमानों के रहनुमा बनने का नाटक इन सब से जनता  को बेवकूफ बना कर राज करने का लोभ इससे कौन बच सकता है? नेहरू जैसे लोग तो कादापी नहीं. वे तो तीन मूर्ती जैसे आलेशान बंगले  मे रहने का छोता मोता लोभी भी नहीं संभाल पाये. राजाओं की तरह रहते थे  बल्की उनसे भी बढ कर. डॉक्टर लोहिया ने उस ज़ामाने में ऊंकी अय्याशियों पर सावाल खड़े किये  थे. आज के समाजवादियों को ये फिजुल की बाते लगाती होंगी.

कारण है कि इन 70 /72 वर्षों में कांग्रेस ने सभी दलों को प्रेरित और प्रभावित करके अपने रंग मे ढाल दिया है। जनता को बेवकूफ बनाने से लेकर, बेईमानी, भ्र्ष्टाचार, झूठ, अय्याशी , वोटबैंक पॉलिटिक्स - सभी तरह से अन्य दलों के चरित्र को भ्रष्ट कर दियाहै। इसका एक मात्र श्रेय कांग्रेस को जाता है।

सत्ता के लोभ में देश हित, लंबी सोच अक्सर ताक पर रख दी जाती रही है। कश्मीर उसका ज्वलंत उदाहरण है। लंबी सोच तो लगभग नदारद है। लफ़्फ़ाज़ी सिर्फ भाजपा या मोदी जी ही नहीँ करते यह परंपरा पुरानी है। और कांग्रेस की डाली हुई है। भाजपा और मोदी ने एक भी ऐसा काम नही किया है जो इससे पहले कांग्रेस ने नही किया हो। कोई भी गड़बड़। जिसकी आज आलोचना हो रही है। बच्चे जब झगड़ते है तो एक थप्पड़ मारे औरदूसरा घूसा मार दे तो पहले वाले को शिकायत यह होती है कि 'मैंने तो थप्पड़ मारा था, तुमने घूसा क्यों मारा' . वह भूल जाता है कि लड़ाई की शुरुआत किसने की। यही हाल है आज की राजनीति का। इन सब के बावजूद एक फर्क यह लगता है कि कांग्रेस के चरित्र का इतना ह्रास हो चुका है और वे इतने लंबे समय राज कर चुके है कि उनके अंतराष्ट्रीय शक्तियों से संबंध पक चुके है और अफसरशाही में उनकी पैठ अंदर तक है। भारत के सत्ता वर्ग में भी उन्हीं के लोग अभी भी भरे पड़े हैं। यह उनकी ताकत है। इस तंत्र को तोड़ना आसान नही। यह टूटे तो बात बने। दूसरा कांग्रेस पूरी तरह खत्म नही होगी तब तक भाजपा का विकल्प भी खड़ा नही होगा।

वर्तमान लड़ाई मुसलमानों के साथ है ही नही। यह तो बनाई जा रही है अपने अस्तित्व की लड़ाई है कांग्रेसी अस्तित्व की।

पवन कुमार गुप्त
दिसंबर 28, 2019
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