Tuesday, December 17, 2019

1815 में विलियम बेंटिक भारत का अंग्रेज़ गवर्नर जनरल यह लिखता है की 'अब हमे डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि भारत का पढ़ा लिखा वर्ग अपनी परम्पराएँ जैसे दान-दक्षिणा देना बंद करके अपने को हमारे जैसा बनाने में  लग गया है" । भारत को हीनता से ग्रसित किया गया। उसे यह समझाया गया की तुम्हारी परम्पराएँ, तुम्हारी जीवन शैली, तुम्हारी मान्यताएँ, तुम्हारे रीति-रिवाज, तुम्हारे तरीके - सब पिछड़े है, दक़ियानूसी है, उनमे अंध-विश्वास है, इत्यादि इत्यादि।

यह सिलसिला 19वीं से आज तक चल रहा है। अब तो पढ़ा लिखा वर्ग अपनी बोली भाषा भी भूल गया है। बेंटिक या उसके जैसे लोग, जो अब हमारी कौम में भी पैदा हो गए हैं, शब्दों और मुहावरों का बड़ी चालाकी से उपयोग करते हैं, (दूसरे के) दिमाग को नियंत्रित करने के लिए। 1949 में अमरीकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन नें बड़ी चालाकी  से development या विकास शब्द का इस्तेमाल किया। उसके पहले विकास शब्द तो था पर किसी पिछलग्गू के साथ इस्तेमाल होता था जैसे - मानसिक विकास, आध्यात्मिक विकास, शारीरिक विकास, आर्थिक विकास, इत्यादि इत्यादि। उसे दिन से विकास का अर्थ एक ही हो गया। जैसा अमरीका है, वैसा बनाना विकास है!।

तो शब्दों से दिमागो के सोचने के ढंग को नियंत्रित किए जाने की कला विकसित की गई। इसका न्यूनतम उदाहरण है "भक्त"। आजकल देश में इस शब्द को एक तरफ गाली के रूप में लोग उपयोग करने लगे हैं और दूसरी उसे भाजपा को अगर आप समर्थन दें, तो उनपर चिपका दिया जाता है। अगर आप कांग्रेस या तृणमूल या और किसी दल के समर्थक हैं तो आप "भक्त" नहीं आप rationalist है। और rationalist होना तो scientific होना है, modern होना है। भक्त होना तो दक़ियानूसी है, पिछड़ापन है।

हमे इस फरेब और इस चालाकी को समझना चाहिए।

दूसरी बात 'भक्त' और 'भक्ति' को हमारी परंपरा में ऊंचा स्थान दिया गया है और है भी। अब ये लोग इसे भी बदनाम करने में लगे हैं। भाजपा का  मसला तो एक बात। पर यह भक्त और भक्ति को क्यों बदनाम किया जा रहा है। इसका प्रतीकार होना चाहिए।

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