Thursday, December 19, 2019

भारत का अभिजात्य वर्ग सिर्फ पैसे से निर्धारित नहीं होता। पैसा बहुत सारे घटकों में से सिर्फ एक है। बहुत सारे दिल्ली शहर के वे लोग जो झोला लेकर और चप्पल पहन कर बिखरे बाल या आजकल की फैशन के अनुसार चोटी और बेतरतीब दाढ़ी रखे हुए बावली सी मुद्रा, कभी गंभीर और चिंतनशील मुद्रा में घूमते पाए जाते है, वे भी इसी अभिजात्य वर्ग में से आते हैं।

आधुनिकता में अपने को ढाल लेना, देसीपन को उतार कर या तो फेंक देना जैसे सांप अपनी केंचुली फेंक देता है, या उस देसीपन को सेक्युलरिज़्म से धो कर या उसमें अपने को रंग कर शुद्ध कर लेना यह सबसे ज़रूरी संस्कार है अभिजात्य वर्ग में प्रवेश पाने के लिए। इन्होंने संत कबीर को भी सेक्युलर बना लिया है। आधुनिक होने के लिए अंग्रेज़ी के साथ एक दोस्ताना रिश्ता बहुत ज़रूरी है। और जब आप आधुनिकता अपनाते हैं तो ज़रूरी है कि आप अपने साधारण को ज़रा मूर्ख, कमतर, कमज़ोर, बेचारा, अशिक्षित, अज्ञानी, लाचार इत्यादि मानने लगे। कुल मिला कर आप श्रेष्ठ और वह साधारण बेचारा हो जाता है जिसके हक के लिए यदा कदा आप लड़ने का नाटक करते है और बहुत हुआ तो उसे अंग्रेज़ी पढ़ा कर, लड़ना (अपने अधिकारों के लिए) सीखा कर अपने जैसा बनाने का प्रयास करते हैं। इस अभिजात्य वर्ग की जड़े नही होती यह rootless होता है। यह अंतराष्ट्रीय नागरिक होता है जो विविधता की बाते बहुत करता है पर दुनिया एक जैसी बनाना चाहता है। इस जंतु को अपने विरोधाभास दिखाई नही पड़ते। यह अपने जीवन में मूल्यों की जगह नही के बराबर छोड़ता है पर सार्वजनिक मंचो पर मूल्यों की खूब दुहाई देता है, उनके लिए जीने मरने की बाते करता है। वह सार्वजनिक जीवन मे एकता, भाई चारे, सौहार्द की बाते करता पर निजी जीवन में उसे चरम सीमा की स्वतंत्रता चाहिए, परिवार में उसे किसी adjustment या compromise से बहुत मुश्किल होती है। पर ये विरोधाभास उसे दिखाई नही देते।

आधुनिक होने और अभिजात्य वर्ग में प्रवेश पाने के लिए उसे सेक्युलर और लिबरल होना ज़रूरी है।

भारत का खासकर दिल्ली का राजनीतिक नेतृत्व नेहरू के जमाने से अभिजात्य रहा है। बीच बीच में थोड़े बहुत दूसरी तरह के लोग आए पर कोई न कोई कारण से चल न सके। जैसे शास्त्री जी, चरण सिंह, राज नारायण जी, कामराज, देवी लाल इत्यादि पर ये ज़्यादा टिक न सके। ये आज वाले मोदी, अमित शाह इत्यादि भी इसी श्रेणी में आते है। बाजपेयी जी ने अपने को संवार कर अभिजात्यों मैं प्रवेश पा लिया था। अब वालों की मुश्किल है। रहा सहा अरुण जेटली जो उस वर्ग का था, वह भी चला गया।

वर्तमान लड़ाई विशेषकर जो सोशल मीडिया पर चल रही है caa का cab को लेकर उसका उपरोक्त से संबंध सुधि पाठक लगाएंगे ऐसी उम्मीद है।

यह हिन्दू मुसलमान की लड़ाई नही है। यह ढोंग के पर्दाफाश की लड़ाई के रूप में और भारत की 70 वर्ष की जड़ता को भी चुनौती है। किसकी जीत होगी, मालूम नही। पर फिर से अगर उनकी जीत हो गई जो 70 वर्षो से हिन्दुओर मुसलमान दोनों को बेवकूफ बना रहे हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण होगा। अगर बाजी दूसरे मार ले गए तो उम्मीद है कि 4/6 वर्षोंमें नए राजनैतिक विकल्प निकलेंगे।

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