आज का सार्वजनिक और व्यस्कतिगत जीवन दोनों ही विरोधाभासों से भरा पड़ा है। आधुनिक विकास और पर्यावरण एवं natural रिसोर्सेज के बीच विरोध। पर्यावरण और gdp के बीच टक्कर। gdp और विकास बढ़ेगा तो पर्यावरण और प्रदूषण पर बुरा असर होगा। प्राकृतिक संसाधन घटेंगे। इत्यादि इत्यादि। अब देखिए रेप होते है तो हथियारों की मांग बढ़ती है। रेप को हथियारों से रोकने की सोच होना स्वाभाविक भी है। पर इसी सब को यहां विरोधाभास कहा जा रहा है।
और देखिए। प्रायः सभी डॉक्टरों और मेडिकल उद्योग के फरेब से परिचित हैं पर हम इतने असहाय हैं कि बीमार पड़ने पर उन्ही के पास जाना मजबूरी है। बच्चों को ईमानदार, संवेदनशील , अच्छा आदमी बनाना चाहते हैं फिर साथ ही competetion के लिए तैयार और प्रैक्टिकल और 'स्मार्ट' भी बनाना चाहते हैं। इसमे भी कहीं विरोधभास है।
अच्छा खाना चाहते है पर किसान रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने को मजबूर है।
फ्रीडम चाहते है पर फ्रीडम किस ब्रांड की बोतल का स्वच्छ पानी पियें, इतने भर में सिमट गया है। तालाब, झील, नदी या नल से स्वच्छ पानी मील इसका फ्रीडम नही है।
इसी तरह के जीवन के प्रत्येक आयाम में आपको मजबूरी, असहायता और विरोध नज़र आएंगे।
मेरा मानना है कि वर्तमान राष्ट्र राज्य व्यावस्थस, वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में इसका समाधान है ही नही। हमारे साथ वैश्विक स्तर पर खेल यह खेला जा रहा है की हमे यह मनवा लिया गया है कि इस मौजूदा व्यवस्था के अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं।
इसपर विचार किया जा सकता है। इन तथाकथित दिखनेवाली मजबूरियों को एक बार अपनी कल्पना में दूर करके सोचने की ज़रूरत है। उस दुनिया में ठाठ होगा, ऐय्याशी नही। needs और wants में फर्क होगा। और महत्व needs को दिया जाएगा। उस दुनिया में संवेदनशील हो कर खर्च या व्यय किया जाएगा। उस दुनिया में दिखावे पर टोका जाएगा। उसमे होने पर जोर होगा, दिखने/दिखाने पर नहीं। बस इतना । शेष बाद में
और देखिए। प्रायः सभी डॉक्टरों और मेडिकल उद्योग के फरेब से परिचित हैं पर हम इतने असहाय हैं कि बीमार पड़ने पर उन्ही के पास जाना मजबूरी है। बच्चों को ईमानदार, संवेदनशील , अच्छा आदमी बनाना चाहते हैं फिर साथ ही competetion के लिए तैयार और प्रैक्टिकल और 'स्मार्ट' भी बनाना चाहते हैं। इसमे भी कहीं विरोधभास है।
अच्छा खाना चाहते है पर किसान रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने को मजबूर है।
फ्रीडम चाहते है पर फ्रीडम किस ब्रांड की बोतल का स्वच्छ पानी पियें, इतने भर में सिमट गया है। तालाब, झील, नदी या नल से स्वच्छ पानी मील इसका फ्रीडम नही है।
इसी तरह के जीवन के प्रत्येक आयाम में आपको मजबूरी, असहायता और विरोध नज़र आएंगे।
मेरा मानना है कि वर्तमान राष्ट्र राज्य व्यावस्थस, वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था में इसका समाधान है ही नही। हमारे साथ वैश्विक स्तर पर खेल यह खेला जा रहा है की हमे यह मनवा लिया गया है कि इस मौजूदा व्यवस्था के अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं।
इसपर विचार किया जा सकता है। इन तथाकथित दिखनेवाली मजबूरियों को एक बार अपनी कल्पना में दूर करके सोचने की ज़रूरत है। उस दुनिया में ठाठ होगा, ऐय्याशी नही। needs और wants में फर्क होगा। और महत्व needs को दिया जाएगा। उस दुनिया में संवेदनशील हो कर खर्च या व्यय किया जाएगा। उस दुनिया में दिखावे पर टोका जाएगा। उसमे होने पर जोर होगा, दिखने/दिखाने पर नहीं। बस इतना । शेष बाद में
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