1947 में आज़ादी के बाद दो मसलों को तो ध्यान में रखना ही होगा। सिर्फ सेक्युलरिज़्म की दुहाई देने से कुछ होने वाला नहीं है। एक कि जो मुस्लिम लीग पाकिस्तान धर्म के आधार पर बनने के समर्थक थे, उनके बहुत से समर्थक हिन्दुतान में रह गए। और शायद अभी भी हों। दूसरा इस्लामी brotherhood उस समय शायद अपने उस उभार पर नही पहुंचा था जैसे पिछले 2 एक दशक में। इन दोनों बातों को ध्यान में रखना जरूरीहै हिन्दू मुसलमान के प्रश्न पर बात करते वक्त।
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