Friday, December 27, 2019


 यह तंज़ में नहीं कहा जा रहा। आप इसपर विश्वास करके मुझे पढ़े। मैंने ज़्यादा पढ़ाई नहीं की है। मैं सोशल साइंस का विद्यार्थी भी नहीं रहा। हाँ पीछे 35/40 वर्षों से छुटपुट अलग अलग चीज़े बेतरतीब ढंग से पढ़ी है। पर हाँ कुछ अच्छे लोग किस्मत से मिल गए उनसे चर्चा करके, उनकी बातें सुनकर बहुत कुछ समझा। और उससे भी ज़्यादा सोचा। काफी सोचा।  चीज़ों को टुकड़े टुकड़े में न समझकर उनको जोड़ने का प्रयास करता रहता हूँ। इस प्रयास में कुछ टुकड़े छूट जाते हैं ,  कुछ बिखर जाते है और कुछ जुड़ कर और बड़े टुकड़े में परिवर्तित हो जाते है, इसे मैं समझना कहता हूँ। ऐसा जब होता है बड़ा सुकून महसूस करता हूँ। मेरे पास शास्त्रीय ज्ञान बहुत कम है। इसलिए बहस नहीं कर सकता। आप इसे स्कॉलरशिप की कमी कह सकते हैं। मेरी समझ अपनी होती है जिसमें बेशक औरों का हाथ होता है। संवाद की भी बात ऐसी ही है। इसमें शास्त्रों का तो पता नहीं पर कृष्णमूर्ति जी जो कहते हैं मुझे ठीक लगता है। आधनिकता को सबसे पहले व्यस्वस्था के रूप में गाँधी जी की हिन्द स्वराज से समझ बनी। फिर प्रोफेसर A. K. Saran के लिखे से। कुमारस्वामी के बाद उनकी परंपरा में संभवतः सबसे विद्वान ही नहीं उससे बढ़के एक ऐसे व्यक्ति जिनको ज्ञान reveal हुआ हो, ऐसे थे सरन साहब। उनके मुताबिक आधुनिकता violent है, newness या novelty seeking है और rootless है या self grounded है। मैं उसमे एक दो चीज़ और जोड़ता हूँ। यह faithless है और छद्यमि है। जो दिखती है सत्य उसके उलट होता है।

पवन कुमार गुप्त
दिसंबर 27, 2019
pawansidh.blogspot. com

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