महात्मा गांधी को न निगलते बनता है और न ही बाहर किया जा सकता है। देश के राजनैतिक नेतृत्व बायें से दाये तक, बंगाल और केरल से लेकर नागपुर तक, जेएनयू सेलेकर बीएचयू तक यही हालत है। देश की संसद जहां महात्मा को ले कर हुआँ हुआँ करते सांसदों का यदि सर्वे किया जाय तो मेरा अनुमान है कि अधिकांश 90% ने गांधी जी का लिखा या बोला शायद ही कुछ पढ़ा हो। हिन्द स्वराज का नाम भी पता न हो, शायद। जिन लोगों को कोई भारतीय भाषा के 1500 से 2000 शब्दों से ज़्यादा नहीं आते उन्हें गांधी जी का ज्ञान हो मानना मुश्किल है। मज़ाक चलता है देश में। खुलेआम झूठ और फरेब चल रहा है। एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने के और कोई काम रह नही गया है।
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