कुछ कर नही सकते तो जो मज़ाक चल रहा है उसका मज़ा ही ले। प्रशांत किशोर की बड़ी चर्चा है। सुनते हैं पहले मोदी जी को चुनाव जिताया। जीतने के बाद ज़्यादा तवज्जो नहीं दी तो किशोर जी ने आम आदमी को चुनाव जितवा दिया फिर नितीश और लालू जी को बिहार में और अब कांग्रेस के चिरंजीवी उनसे बात कर रहे है पंजाब और यू पी के चुनाव के लिए। इस सबके बीच नितीश जी ने उन्हे अपनी सरकार मे काबीना मंत्री सरीखा रुतवा भी दे रखा है। प्रशांत जी कई दलों से एक साथ सौदा कर सकते है, काबीना मंत्री का रुतबा भी एक राज्य में रख सकते है। और चुनाव तो जित्वा ही देते है, तभी तो सबको उनकी इतनी पूछ है। कोई जादूगर से कम तो नहीं होंगे। जे एन यू के होनहार उभरते नेता कन्हैया ने मोदी जी को जादूगर की उपमा दी - ठीक हे है। अब प्रशांत किशोर तो उससे भी बड़े जादूगर निकले। जिसे चाहे चुनाव जीता दे।
मैं भी सोचता हूँ क्या हम सोचने को स्वतंत्र हैं? हमे लगता तो है की सोचने में क्या है। कम से कम सोचने पर तो कोई नियंत्रण नहीं है। पर यह कितना सच है? sigmund freud के एक भतीजे हुए जिनका नाम था edward bernays। अमरीकी राष्ट्रपति फ़्रेंकलिन रूसवेल्ट जिनहोने आधुनिक अमरीका को दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया, जिनके कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे विश्व बैंक, यू एन, आई एम एफ इत्यादि बनाई गई (सब अमरीका के नेतृत्व में) दुनिया को अपने (अमरीका के) मुताबिक चलाने के लिए ने bernays को लोगों की सोच को सरकार के अनुसार ढालने के लिए नियुक्त किया और खूब अच्छा इस्तेमाल किया।
लोगों को लगता है की वे सोचते हैं पर उन्हे सुचवाया जाता है। प्रशांत जी भी कुछ वैसा हे कर रहे है। जय हो लोक तंत्र की!
मैं भी सोचता हूँ क्या हम सोचने को स्वतंत्र हैं? हमे लगता तो है की सोचने में क्या है। कम से कम सोचने पर तो कोई नियंत्रण नहीं है। पर यह कितना सच है? sigmund freud के एक भतीजे हुए जिनका नाम था edward bernays। अमरीकी राष्ट्रपति फ़्रेंकलिन रूसवेल्ट जिनहोने आधुनिक अमरीका को दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार किया, जिनके कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे विश्व बैंक, यू एन, आई एम एफ इत्यादि बनाई गई (सब अमरीका के नेतृत्व में) दुनिया को अपने (अमरीका के) मुताबिक चलाने के लिए ने bernays को लोगों की सोच को सरकार के अनुसार ढालने के लिए नियुक्त किया और खूब अच्छा इस्तेमाल किया।
लोगों को लगता है की वे सोचते हैं पर उन्हे सुचवाया जाता है। प्रशांत जी भी कुछ वैसा हे कर रहे है। जय हो लोक तंत्र की!
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