जैसे धर्म का अर्थ संकीर्ण हो कर सिर्फ सम्प्रदाय या religion में सिमट गया है वैसे ही राजनीति का अर्थ सिमट कर दलगत राजनीति और चालाकी या बहुत हुआ तो कूटनीति (मुम्बई में जो हुआ, उस तरह की हरकतें) में सिमट गया।
लेकिन जैसे धर्म का असली अर्थ व्यापक और सुंदर है वैसे ही राजनीति का भी। और उस राज नीति में चालाकी, पैंतरेबाजी इत्यादि इत्यादि का स्थान नही। आज तो इसी अर्थ में राजनीति को लिया जा रहा है। असल मे तो राज नीति का मनुष्य के मूलभूत स्व-भाव, उसकी मूलभूत आकांक्षाओं से और विधान से साम्य होना आवश्यक है। नहीं तो वह राजनीति नहीं सिर्फ साम दाम दण्ड भेद से सत्ता हथियाने का खेल भर है।
मेरी बात बेकार की और 'बड़ी बड़ी' लग सकती है पर मेरा मानना है जिस प्रकार की राजनीतिक बहसें और तंज़ जिसे सोशल मीडिया हम कहते है उस पर हो रही है उससे कुछ निकलने वाला नही। जो राजनीति (दोनों तरफ से) चल रही है उससे कुछ निकल ही नही सकता। सामान्य आदमी से इस वर्तमान (सब तरह की ) राजनीति और मीडिया को कोई सरोकार रह नही गया है।
तो क्या यह सम्भव है कि हम किस प्रकार का देश और समाज चाहते है, भले ही उसकी सम्भावना हमे आज दूर की कौड़ी लग रही हो, उसकी कल्पना करें और साथ ही इसका की उस तरह का देश समाज अगर मूर्त रूप लेता है तो वहां की व्यवस्थाएं कैसी होंगी?
लेकिन जैसे धर्म का असली अर्थ व्यापक और सुंदर है वैसे ही राजनीति का भी। और उस राज नीति में चालाकी, पैंतरेबाजी इत्यादि इत्यादि का स्थान नही। आज तो इसी अर्थ में राजनीति को लिया जा रहा है। असल मे तो राज नीति का मनुष्य के मूलभूत स्व-भाव, उसकी मूलभूत आकांक्षाओं से और विधान से साम्य होना आवश्यक है। नहीं तो वह राजनीति नहीं सिर्फ साम दाम दण्ड भेद से सत्ता हथियाने का खेल भर है।
मेरी बात बेकार की और 'बड़ी बड़ी' लग सकती है पर मेरा मानना है जिस प्रकार की राजनीतिक बहसें और तंज़ जिसे सोशल मीडिया हम कहते है उस पर हो रही है उससे कुछ निकलने वाला नही। जो राजनीति (दोनों तरफ से) चल रही है उससे कुछ निकल ही नही सकता। सामान्य आदमी से इस वर्तमान (सब तरह की ) राजनीति और मीडिया को कोई सरोकार रह नही गया है।
तो क्या यह सम्भव है कि हम किस प्रकार का देश और समाज चाहते है, भले ही उसकी सम्भावना हमे आज दूर की कौड़ी लग रही हो, उसकी कल्पना करें और साथ ही इसका की उस तरह का देश समाज अगर मूर्त रूप लेता है तो वहां की व्यवस्थाएं कैसी होंगी?
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