Tuesday, December 17, 2019

यह शिक्षा जो पिछले 200 वर्षों से हमे मिल रही है,  दिमाग को तंग तो कर देती है। अहंकार अलग से। और यह अहंकार दो तरफा तलवार की तरह काम करता है। एक तरफ अपने ही साधारण लोगों सेआपको दूर कर देता है। उनकी बातें तो होती हैं पर उनकी सोच के प्रति कोई सम्मान नही होता। उनके प्रति अधिक से अधिक बेचारगी का भाव होता है। अगर कोई ईमानदार कोशिश करता है तो उन्हें अपने जैसा बनाने की। अपने को उनके जैसा बनने की तो सोच बहुत दूर की कौड़ी है।

सुना था। गलत ही होगा। सोनिया गांधी जब कांग्रेस में सक्रिय हुई तो बिहार के सीताराम केसरी जी अध्यक्ष हुआ करते थे। बिहार का साधारण आदमी, अगर लुटियन की दिल्ली से संस्कारित होने से वंचित रह गया हो, तो सरसों के तेल से बड़ा प्रेम होता है। वह इसे खाता भी है और लगाता भी है। और यह अच्छा भी है,  विशेषकर ठंड के दिनों में। केसरी जी होशियार थे पर थे देसी, सरसों के तेल से प्रेम था, उन्हें। वे olive oil से कोसों दूर थे। अब सोनिया जी ठहरी olive oil के देश से। उन्हें सरसों से बदबू आती थी। और केसरी जी को खुशबू। और फिर सोनिया जी गोरी भी हैं। जैसे भी अंग्रेज़ी उनकी हो पर फिर भी उनकी हिंदी से उनकी अंग्रेज़ी ज़्यादा अच्छी थी। केसरी जी को अंग्रेज़ी शायद ही आती हो। तो टकराव तो होना ही था। जिस दिल्ली का निर्माण कांग्रेसी राज में 60/70 सालमें हुआ उसमे सरसों से बदबू आएगी ही। केसरी नई को हटना पड़ा। एक बसर फिर सरसों बेचारी olive से हार गई।

आपमुझे शायद सिरफिरा समझेंगे कि क्या ऊटपटांग बातें कर रहा हूँ। पर करने दीजिए। इतने समझदार पोस्टों के बीच, इतने क्रांतिकारी विचारों के बीच, इतने संवेदनशील लोगों के बीच सिरफिरों को भी थोड़ीसी जगह दे दीजिए। हमे आधुनिकफैशन समझ तहिआ रही।विवेक है, दिमाग है? यैसा शिक्षा ने सबको फैशनेबल बना दिया है।पता नही। olive oil सरसों पर हावी रहेगा? क्या यही नियति है हमारी?

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