एक अलग विशिष्ट जाति पिछले 200 वर्षों में बनी है जिसके बारे में पिछली पोस्ट में लिखा था और ब्लॉग पर भी डाला था। हालांकि ब्राह्मण कोई जाति नही होती लेकिन यह नई जाति ब्राह्मणों का नया अंग्रेज़ी संस्करण है। ये अपनर को दूसरों से अलग मानते हैं - ऊंचा और विशिष्ट। ब्राह्मणों की ही तरह, दूसरे उनको ऊंचा या विशिष्ट माने या न माने, ये अपने को मानते है। अन्य समाज कैसे दुनिया को देखे, उसके मूल्यांकन के मापदंड क्या होंगे, यह नई जाति वाले उसका ठेका लिए होते हैं। पुराने ब्राह्मण जैसे शास्त्रों का हवाला देते थे और अपने को उसका धारक वाहक मानते थे ये लोग आधुनिक विज्ञान के ठेकेदार बन गए हैं। समाज शास्त्र को भी इन्होंने समाज विज्ञान बना दिया है। जैसे ब्राह्मणों में अधिकतर को शास्त्रों का विशेष ज्ञान नहीं होता था पर लोगों को धोखे में रखते थे, बहुदा खुद भी धोखे में रहते थे 10-50 मंत्रों को रट कर, वैसे ही आज के ये नए ब्राह्मण भी हैं। इनमे से अधिकतर को विज्ञान वैगरह की ज़्यादा जानकारी नही होती। आधुनिक विज्ञान तो अब सापेक्षता और निरपेक्षता की गुत्थी सुलझाने में अपने बाल नोंच रहा है। subjectivity से छुटकारा पाने को बेचैन है , ऑब्जेक्टिविटी का पता ही नही चल पा रहा। पर ये नई जाति वाले अपने को ऑब्जेक्टिव और rational कहते है। बाकि सब इनके लिए पिछड़ा, दकियानूसी, अंधविश्वास इत्यादि इत्यादि होता है।
जनवरी 17 2020
जनवरी 17 2020
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