मुझे नही मालूम कि विगत में जातियां बनती मितटी रही हैं या नहीं पर हमारे य़ाहां एक नई जाती बन गई हैं. जातियों में एक समान धार्मिता होती हैं. उनके देवी देवता एक होते हैं. उनके तीज त्योंहार, आचार व्यवाहार इत्यादी एक जैसे होते हैं. उनकी सामाजिक मान्यतायें एक जैसी होती हैं . वे आपनी जाति के लोगों के साथ रहना चाहते हैं. एक जाति के लोग अलग अलग स्थानों पर भी रहते हैं पर एक दूसरे को समझते हैं, ज़रूरत में एक दूसरे का सहयोग करते हैं. जाति के लोगों की आपस में बने या न बने पर दूसरे लोगों से खतरा लगे तो सब एक दूसरे का साथ देते हैं.
हमारे यहां इन सभी लक्षणो के साथ एक नई जाति बनी हैं पिछली एक आध सदी में. ये अपने को दूसरे लोगों से ऊंचा मानते हैं। इनमें भयंकर अहंकार पाया जाता है। ये देश के अन्य लोगों को मूर्ख, दुष्ट, नासमझ, ओछा, अपने से हीन इत्यादि मानते हैं। इनके पास हमेशा सत्ता होती है। सीधे सीधे सत्ता न भी ही तो भी सत्ता की बागडोर बहुत हद तक इनके पास होती है। इन्हें विदेश में, विशेषकर पश्चिम में बैठे इसी जाति के भाई बहनों से हर प्रकार की मदद और प्रोत्साहन (वहां की बड़ी यूनिवासिटियों मैं नौकरी से लेकर भाषण करने के न्यौते, बड़े बड़े पुरुस्कार, पैसे भी) मिलता रहता है। इससे इनकी साख अपनी जाति में तो बढ़ती ही है, दूसरे लोग भी प्रभावित होते रहते हैं। इनका बड़ा आतंक है। ये अफवाह फैलाने में, भ्रम फैलाने में, बात को घुमा फिरा कर उसके अर्थ को अनर्थ करने में, प्रचार करने में, अपने प्रति सहानुभूति मिलवाने में माहिर हैं। ये ऐसा दिखाते हैं कि इन्हें देश, दुनिया और लोगों की जितनी चिंता है, उतनी किसी अन्य तबके को नहीं। पर असल में इन्हें अपने हाथ से सत्ता न निकल जाए इसकी चिंता रहती है। इन्हें या तो अपने जैसे ही जाति वाले लोग पसंद हैं या वो जिन पर ये दया कर सकें, जिन पर ये उपकार करने का नाटक कर सके, जो इन्हें बड़े सम्मान से देखे, माई बाप माने। शेष लोगों से इन्हें नफरत है।
इनकी पैदाइश 19वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में अंग्रेजों द्वारा हुई। कह सकते है यह उन्ही की नाजायज संतान हैं। आजकल इन्हें लेफ्टिस्ट, लिबरल, सेक्युलरिस्ट इत्यादि नामो से संबोधित किया जा सकता है।
पवन कुमार गुप्त
जनवरी 17, 2020
pawansidh.blogspot. com
हमारे यहां इन सभी लक्षणो के साथ एक नई जाति बनी हैं पिछली एक आध सदी में. ये अपने को दूसरे लोगों से ऊंचा मानते हैं। इनमें भयंकर अहंकार पाया जाता है। ये देश के अन्य लोगों को मूर्ख, दुष्ट, नासमझ, ओछा, अपने से हीन इत्यादि मानते हैं। इनके पास हमेशा सत्ता होती है। सीधे सीधे सत्ता न भी ही तो भी सत्ता की बागडोर बहुत हद तक इनके पास होती है। इन्हें विदेश में, विशेषकर पश्चिम में बैठे इसी जाति के भाई बहनों से हर प्रकार की मदद और प्रोत्साहन (वहां की बड़ी यूनिवासिटियों मैं नौकरी से लेकर भाषण करने के न्यौते, बड़े बड़े पुरुस्कार, पैसे भी) मिलता रहता है। इससे इनकी साख अपनी जाति में तो बढ़ती ही है, दूसरे लोग भी प्रभावित होते रहते हैं। इनका बड़ा आतंक है। ये अफवाह फैलाने में, भ्रम फैलाने में, बात को घुमा फिरा कर उसके अर्थ को अनर्थ करने में, प्रचार करने में, अपने प्रति सहानुभूति मिलवाने में माहिर हैं। ये ऐसा दिखाते हैं कि इन्हें देश, दुनिया और लोगों की जितनी चिंता है, उतनी किसी अन्य तबके को नहीं। पर असल में इन्हें अपने हाथ से सत्ता न निकल जाए इसकी चिंता रहती है। इन्हें या तो अपने जैसे ही जाति वाले लोग पसंद हैं या वो जिन पर ये दया कर सकें, जिन पर ये उपकार करने का नाटक कर सके, जो इन्हें बड़े सम्मान से देखे, माई बाप माने। शेष लोगों से इन्हें नफरत है।
इनकी पैदाइश 19वीं शताब्दी के शुरुआती दौर में अंग्रेजों द्वारा हुई। कह सकते है यह उन्ही की नाजायज संतान हैं। आजकल इन्हें लेफ्टिस्ट, लिबरल, सेक्युलरिस्ट इत्यादि नामो से संबोधित किया जा सकता है।
पवन कुमार गुप्त
जनवरी 17, 2020
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