जो नोट बनाया था उसके आगे......ग्राम पंचायत स्तर पर चरागाह बनाने और उसके साथ गोबर से जैविक खेती को छोटे किसानों में प्रोत्साहित करने के लिए उनको MSP के ऊपर 25-30% अतिरिक्त देने की बात पिछले नोट में हो चुकी है। कोरोना के बाद उम्मीद है की शहरी लोगों में भी सेहत को लेकर संवेदनशीलता बढ़ेगी और वे शाकाहारी भोजन, घरेलू भोजन और जैविक खेती की तरफ आकर्षित होंगे। इसलिए जैविक खेती की मांग बढ्ने वाली है। इसका लाभ छोटे किसानों को मिल सकता है अगर सरकार की तरफ से थोड़ा बढ़ावा दिया जाय।
इसके अलावा छोटे और पारंपरिक कामों को - हथकरघे से बने कपड़े, लोहे से बने बर्तन और रसोई के समान, बांस और बेंत के फर्नीचर, छोटे कारीगरों के बनाए चमड़े के समान, पीतल, तांबे इत्यादि के समान मिट्टी के बर्तन इत्यादि की भी थोड़ी सी बात पहले हो चुकी है। इन्हे मार्केटिंग की सुविधा खड़ी ग्रामोद्योग की दुकानों और पोस्ट ऑफिसों के अभूतपूर्व देशभर के नेटवर्क से दिलवाने की व्यवस्था सरकार कर सकती है। साथ ही इनही माइक्रो फाइनन्स से जोड़ा जा सकता है। यह ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में जान फूंकने जैसा होगा और आज के दिन इसे करने में अंदरूनी और बाहरी दवाब या बाधा भी या तो नहीं आएगी या बहुत कम।
दूसरी तरफ चीन अभी पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका है। इसका फायदा हम उठा सकते हैं। वहाँ से चीजों के आयात को बहुत सोच समझ कर ही इजाज़त दी जाय। आज हम यह कर पाएंगे। शायद कोरोना के पहले इसे अंतर-राष्ट्रीय दवाब के कारण संभव न होता। और हम अपने छोटे, बड़े उद्योगपतियों से यह कह सकते हैं की वे अपनी शक्ति ऐसी मशीनों को बनाने में लगाएँ जो देश के छोटे किसानों, घरेलू उपयोग एवं छोटे उद्योगों के काम की हों। जैसे 1 या 2 HP या उससे भी कम पावर की मोटरें और पम्प जो छोटे किसान सौर ऊर्जा के छोटे से पैनेल से से चल सके बनाएँ। छोटी धान से छिलका निकालने की मशीन, छोटी तेल पिरोने की मशिने, छोटी खांडसारी और गुड बनाने की मशिने, जिसमे प्रदूषण थोड़ा कम हो, इत्यादि बनाया जाय। पहाड़ों में एक छोटे से नाले से 1 KW से 20/30 KW तक का पवार बनाने की हाइड्रोलिक मशिने आसानी से बनाई जा सकती हैं। चीन यह सब बनाते रहा है और हमारे यहाँ आयात भी हुई हैं। इन्हे बनाने में कोई खास दिक्कत नहीं आएगी। टाटा, महिंद्रा इत्यादि ग्रुप सरकार के कहने पर शायद यह बीड़ा उठा भी लें। इसके लिए उन्हे कुछ incentive भी दिया जाय तो बुरा नहीं।
यह मशीनों वाले काम में दो तीन सिद्धान्त ध्यान में रखे जाय। 1) वे मशीने जो छोटे किसान, छोटे उद्योगों और घरेलू कामों को मदद करे उन्हे बड़े कारखानों में बनाया जा सकता है, 2) ये मशीनें जहां तक हो सके सौर ऊर्जा से चल सके जिसका पैनल उपयोग करने वाले के हाथ में रहे ताकि वह स्वायत हो सके 3) मशीन आसानी से मरम्मत हो सके, स्थानीय स्तर पर, 4) कीमत आम आदमी के दायरे के अंदर हो
इसके अलावा छोटे और पारंपरिक कामों को - हथकरघे से बने कपड़े, लोहे से बने बर्तन और रसोई के समान, बांस और बेंत के फर्नीचर, छोटे कारीगरों के बनाए चमड़े के समान, पीतल, तांबे इत्यादि के समान मिट्टी के बर्तन इत्यादि की भी थोड़ी सी बात पहले हो चुकी है। इन्हे मार्केटिंग की सुविधा खड़ी ग्रामोद्योग की दुकानों और पोस्ट ऑफिसों के अभूतपूर्व देशभर के नेटवर्क से दिलवाने की व्यवस्था सरकार कर सकती है। साथ ही इनही माइक्रो फाइनन्स से जोड़ा जा सकता है। यह ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में जान फूंकने जैसा होगा और आज के दिन इसे करने में अंदरूनी और बाहरी दवाब या बाधा भी या तो नहीं आएगी या बहुत कम।
दूसरी तरफ चीन अभी पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका है। इसका फायदा हम उठा सकते हैं। वहाँ से चीजों के आयात को बहुत सोच समझ कर ही इजाज़त दी जाय। आज हम यह कर पाएंगे। शायद कोरोना के पहले इसे अंतर-राष्ट्रीय दवाब के कारण संभव न होता। और हम अपने छोटे, बड़े उद्योगपतियों से यह कह सकते हैं की वे अपनी शक्ति ऐसी मशीनों को बनाने में लगाएँ जो देश के छोटे किसानों, घरेलू उपयोग एवं छोटे उद्योगों के काम की हों। जैसे 1 या 2 HP या उससे भी कम पावर की मोटरें और पम्प जो छोटे किसान सौर ऊर्जा के छोटे से पैनेल से से चल सके बनाएँ। छोटी धान से छिलका निकालने की मशीन, छोटी तेल पिरोने की मशिने, छोटी खांडसारी और गुड बनाने की मशिने, जिसमे प्रदूषण थोड़ा कम हो, इत्यादि बनाया जाय। पहाड़ों में एक छोटे से नाले से 1 KW से 20/30 KW तक का पवार बनाने की हाइड्रोलिक मशिने आसानी से बनाई जा सकती हैं। चीन यह सब बनाते रहा है और हमारे यहाँ आयात भी हुई हैं। इन्हे बनाने में कोई खास दिक्कत नहीं आएगी। टाटा, महिंद्रा इत्यादि ग्रुप सरकार के कहने पर शायद यह बीड़ा उठा भी लें। इसके लिए उन्हे कुछ incentive भी दिया जाय तो बुरा नहीं।
यह मशीनों वाले काम में दो तीन सिद्धान्त ध्यान में रखे जाय। 1) वे मशीने जो छोटे किसान, छोटे उद्योगों और घरेलू कामों को मदद करे उन्हे बड़े कारखानों में बनाया जा सकता है, 2) ये मशीनें जहां तक हो सके सौर ऊर्जा से चल सके जिसका पैनल उपयोग करने वाले के हाथ में रहे ताकि वह स्वायत हो सके 3) मशीन आसानी से मरम्मत हो सके, स्थानीय स्तर पर, 4) कीमत आम आदमी के दायरे के अंदर हो
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