Saturday, April 11, 2020

इतिहास में ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं जब वो काम किए जा सकते हैं जिन्हे आम तौर पर करने में बड़ी अड़चने आती हैं। करोना और इस काम ठप्प (lock down) ने भारत को एक बड़ा अवसर दिया है, कि हम अपनी जड़ों को, उसकी ताकत को, पहचान कर, उससे जुड़े। और भारत एक बार फिर से अपनी सीरत और स्वभाव के अनुकूल, आत्मविश्वास के साथ जिये और दुनिया में अपनी अलग पहचान बना कर उन्हे भी प्रेरणा देने का काम करे। देश के पास यह अवसर आया है। इसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए।

दुनिया पिछली सदी में इस तरह आपस में जुड़ गई है (शायद गुत्थम गुत्था कहना ज़्यादा उचित होगा) कि किसी भी राष्ट्र के लिए अपने लिए एक अलग paradigm में जीना मुश्किल हो गया है। पर इस संकट की घड़ी में जब सब जगह lock down की स्थिति है तो हम अपने लिए इस समय एक अलग राह, जो हमारे लिए ज़्यादा अनुकूल, हमारे स्वभाव से ज़्यादा मिलती हुई, हो बना सके। हमारी 50-60 प्रतिशत आबादी अभी भी गैर-व्यवस्थित (unorganised sector) से जुड़ी है, वहीं से अपनी आजीविका चलाती है। राष्ट्रीय आय में कारपोरेट सेक्टर जिसकी चर्चा बहुत अधिक होती है का योगदान 14-15% के आसपास ही है। कृषि 17/18% और विभिन्न प्रकार के घरेलू, छोटे उत्पादन और उद्योगों से करीब 50% का योगदान है। यह बड़ी चीज़ है। किसी भी "विकसित" राष्ट् की स्थिति ऐसी नहीं हो सकती। उनके यहाँ घरेलू उत्पादन और उद्योग तो लगभग समाप्त ही होंगे। कृषि भी कॉर्पोरेट के हाथ में होगी। इस समय यह हमारी ही ताकत है कि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इन छोटे उद्योगों, उत्पादन और कृषि से अपनी आजीविका चलाता है और इन इकाइयों का राष्ट्रीय आय में एक अहम हिस्सा है। इन दोनों को साथ रखें तो यह एक ताकत के रूप में नज़र आती हैं।

जो राष्ट्र जितना विकसित वह बुनियादी चीजों के उत्पादन (और वह भी साधारण जन मानस द्वारा) से उतना ही दूर हो गया है। यह एक प्रकार से पर-निर्भरता को बढ़ावा देना हुआ। हम बावजूद, दुनिया और देश के पिछले कम से कम 2 शताब्दी से एक तरफा चलने के और इस साधारण समाज और इनके जरिये जो काम होता है, उसकी अनदेखी करते हुए भी, अब भी बहुत कुछ बचा ले गए। इसे अगर पहचान कर इस बहुसंकयक तबके को मजबूत और प्रोत्साहित करने पर काम हो तो यह देश को एक नई दिशा और मजबूती दे सकता है।

क्या भारत की हरेक ग्राम पंचायत स्तर पर एक 15/25 एकड़ भूमि पर एक चारागाह नहीं बनाया जा सकता जिसमे दो तीन छोटे तालाब भी हों। चारों तरफ सुरक्षित करने के लिए शुरू में तारबाड़ और बादमें कोई स्थानीय झड़ी या पेड़ से इसे घेरा जासकता है। जो बूढ़ी गायें सड़कों पर यूंही लावारिस छोड़ दी जाती है उंन्हे यहां आश्रय दिया जा सकता है। चारागाह में 3/4 लोगों को रोजगार मिल सकता है जिनका मुख्य काम, निगरानी के अलावा, गोबर एकत्रित करने का होगा।

इसके साथ जो छोटे किसान है, जिनके पास 3 एकड़ से कम भूमि हो, उंन्हे प्रोत्साहित किया जाय की वे सिर्फ गाय, बैल  और गोबर की खाद खेती करेंगे। इसके लिए उंन्हे उपज की जो msp सरकसर निश्चित करतीहै उससे 30% अधिक मूल्य दिया जाय बशर्ते की वो रासायनिक खाद का पूर्णतः परित्याग करते है और बैल से हल चलाकर खेती करते हैं। इससे देश का एक बड़ा उत्पादन जैविक में तब्दील हो जाएगा। और साथ ही गाय और बैलों को बचाया जा सकेगा। लावारिस घूम रही गायों को आश्रय भी मिलेगा। चारागाह से 5/10 लाख लोगों को रोजगार भी मिलेगा।

इसके अलावा जिन जिन इलाकों में कारीगर समाज के लोग अभी भी अपना धंधा चला रहे है जैसे सूती वस्त्र, लोहे का सामान, पीतल, तांबे और कांसे का काम, चमड़े का काम, प्रिंटिंग का काम, पत्थर का काम, बांस, बेंत का काम, इत्यादि - यह शायद सरकार के पास पहले से उपलब्ध हो - वहां वहां उंन्हे छोटे ऋण और खादी ग्रामोद्योग एवं डाकघरों से बिक्री की व्यवस्था की जाय और इस छोटे उद्योगों को एक बड़ा प्रोत्साहन दिया जाय।

बहुत संक्षेप में कुछ सुझाव भेज रहा हूँ। ठीक लगे तो आगे बढ़ सकता हो बढ़ाने में मदद करे। पवन

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